सेना का नाम जुबां पर आते ही दिल में देशभक्ति की भावना जागृत हो जाती है। भारतीय नौजवानों की कहानियां आज भी हर एक मां बड़े ही प्यार से सुनाती है। यूं तो, ये जवान जिंदा रहकर सीमाओं की रक्षा करते नजर आते हैं, तो वहीं, देश के लिए शहीद होकर हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं। भारतीय नौजवानों के हिम्मत की कहानियां तो आपने काफी सुनी होंगी, लेकिन आज हम आपको एक सेना के शहादत के बाद की शॉकिंग कहानी बताने जा रहे हैं। इस जवान ने ना सिर्फ जिंदा रहते देश की सेवा की है, बल्कि मरणोपरांत भी 52 साल से भारतीय सीमा की रक्षा में डटा हुआ है। थोड़ा शॉकिंग है, लेकिन सच है। और इस कहानी के साक्ष्य आज भी सिक्किम की सेना में मौजूद नौजवानों के समीप है। (baba harbhajan singh story in hindi)
इस दिवंगत सेना के जवान का नाम बाबा हरभजन सिंह है। जिसकी मूर्ति बनाकर सिक्किम के लोग उन्हें आज भी पूजा करते हैं। कहानी को शुरू से शुरू करते हैं और आइए एक सेना के जवान के बाबा बनने तक की पूरी कहानी जान लेते हैं-
बाबा हरभजन सिंह की कहानी जितनी हैरतअंगेज और प्रेरणादायक है उतनी ही दिलचस्प भी है। हमने आज तक कई शहीदों और सेना में सेवारत जवानों के किस्से सुने हैं, लेकिन बाबा हरभजन की कहानी काफी यूनिक है। 30 अगस्त 1946 को जन्मे बाबा हरभजन सिंह, 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे। 1968 में उन्हें 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में भेजा गया।
सपने में आ कर बताई थी अपनी मौत की जगह
4 अक्टूबर 1968 की बात है जब हरभजन खच्चरों का एक काफिला अपने साथ ले जा रहे थें। अचानक नाथू ला पास के नजदीक आकर उनका पांव फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई। पानी का तेज बहाव उनके शरीर को बहाकर 2 किलोमीटर दूर ले गया। हरभजन को लेकर कहा जाता है कि उन्होंने खुद अपने दोस्त के सपने में आकर अपनी मौत की जानकारी दी थी, साथ ही ये भी बताया था कि उनका शरीर कहा मिलेगा।
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हरभजन सिंह की डेड बॉडी ढूंढने के लिए खोजबीन शुरू की गई और भारतीय सेना को उनका पार्थिव शरीर वहीं मिला, जिस जगह का जिक्र उन्होंने सपने में आकर किया था। यह भी माना जाता है कि सपने में उन्होंने इस बात की इच्छा जताई थी कि उनकी समाधि बनाई जाये। हरभजन सिंह की इच्छा का मान रखते हुए उनकी समाधि बनवाई गई जिसको देखने लोगों की भीड़ आज भी सिक्किम में इकट्ठा होती है।
9 किलोमीटर नीचें बना है बाबा हरभजन जी का मंदिर
लोगों की इसी आस्था को देखते हुए और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए भारतीय सेना ने 1982 में उनकी समाधि को 9 किलोमीटर नीचे बनवाया दिया, जिसे अब बाबा हरभजन मंदिर के नाम से जाना जाता है। हर साल हजारों लोग यहां दर्शन करने आते है।
भारतीय सेना के मुताबिक, अपना शरीर त्याग कर देने के बाद भी हरभजन सिंह नाथु ला के आस-पास चीन सेना की गतिविधियों की जानकारी अपने मित्रों को सपनों में देते रहे हैं, जो कि आगे चलकर सच भी हुई है। पहले लोग महज इसे सपना सोच हरभजन सिंह की बातों को नकार देते थे, लेकिन जब ये सपने सच होने लगे, तो जवानों को ये यकीन हो गया कि हरभजन सिंह शहादत के बाद भी देश की सेवा में तत्पर हैं।
मरने के बाद भी मिलती है छुट्टी
इसी तथ्य के आधार पर उनको मरणोपरांत भी भारतीय सेना की सेवा में रखा गया। यहां तक उनके प्रति सेना का भी इतना विश्वास है कि उन्हें बाकी सभी की तरह वेतन, दो महीने की छुट्टी आदि सुविधा दी जाती रही है। उनकी छुट्टी के दौरान ट्रेन से उनके घर तक की टिकट बुक कराई जाती है, लोग उनका सामान लेकर जुलूस के रूप में उन्हें रेलवे स्टेशन तक विदा करने जाते हैं। साथ ही उनकी सैलरी का एक चौथाई हिस्सा उनकी मां को भेजा जाता रहा है।
भारतीय सेना के मुताबिक आज भी नाथुला में जब-जब भारत और चीन के बीच फ्लैग मीटिंग होती है, तब-तब चीन की तरफ से बाबा हरभजन के लिए एक अलग कुर्सी लगाई जाती है। वहीं, हरभजन सिंह के मंदिर में उनके जूते और बाकी सामान को रखा गया है। भारतीय नौजवान मंदिर की चौकीदारी में तत्पर रहते हैं और उनके जूतों को पॉलिश करते हैं। मंदिर की सेवा करने वाले नौजवान बताते हैं कि रोज बाबा के जूतों पर किचड़ लगा होता है और बिस्तर पर सलवटें पड़ी होती हैं।
भारतीय नहीं बल्कि चीनी सैनिकों का भी विश्वास है कि उन्होंने रात में बाबा हरभजन सिंह को घोड़े पर सवार होकर गस्त लगाते देखा है। आज उनकी मौत को 54 साल हो चुके हैं, लेकिन हरभजन सिंह देश की सेवा में पूरी तरह तत्पर हैं। बाबा हरभजन सिंह को नाथू ला का हीरो भी कहा जाता है।
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